OSI मॉडल क्या है? – What is OSI model in Hindi?

इस पोस्ट में हम what is OSI Model in Hindi and 7 layers (OSI मॉडल क्या है तथा इसकी 7 लेयर) के बारें बहुत ही आसान भाषा में पढेंगे तथा इसके लाभ, हानियाँ, लेयर क्या है इसके बारें में विस्तार से पढेंगे. तो चलिए start करते हैं:-

OSI Model in Hindi – ओएसआई मॉडल क्या है?

  • OSI model का पूरा नाम Open System Interconnection है इसे ISO (International Organization for Standardization) ने 1984 में विकसित किया था और इस मॉडल में 7 layers होती है।
  • ओएसआई मॉडल किसी नेटवर्क में दो यूज़र्स के मध्य कम्युनिकेशन के लिए एक reference मॉडल है। इस मॉडल की प्रत्येक लेयर दूसरे लेयर पर निर्भर नही रहती है लेकिन एक लेयर से दूसरे लेयर में डेटा का ट्रांसमिशन होता है।
  • OSI मॉडल एक रेफेरेंस मॉडल है अर्थात् इसका इस्तेमाल real life में नही होता है बल्कि इसका इस्तेमाल केवल reference (संदर्भ) के रूप में किया जाता है.
  • OSI model यह बताता है कि किसी नेटवर्क में डेटा या सूचना कैसे send तथा receive होती है। इस मॉडल के सभी layers का अपना अलग अलग काम होता है जिससे कि डेटा एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम तक आसानी से पहुँच सके।
  • OSI मॉडल यह भी describe करता है कि नेटवर्क हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर एक दूसरे के साथ लेयर के रूप में कैसे कार्य करते है।
  • इस मॉडल की 7 लेयर होती है और प्रत्येक लेयर का अपना एक विशेष कार्य होता है.

7 Layers of OSI MODEL IN HINDI – ओ एस आई मॉडल की लेयर

OSI model में निम्नलिखित 7 layers होती हैं आइये इन्हें विस्तार से जानते है:-

PHYSICAL LAYER (फिजिकल लेयर)

OSI model में physical लेयर सबसे नीचे की लेयर है। यह लेयर फिजिकल तथा इलेक्ट्रिकल कनेक्शन के लिए जिम्मेदार रहता है जैसे:- वोल्टेज, डेटा रेट्स आदि। इस लेयर में डिजिटल सिग्नल, इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल जाता है।

इस लेयर में नेटवर्क की topology अर्थात layout of network (नेटवर्क का आकार) का कार्य भी इसी लेयर में होता है। फिजिकल लेयर यह भी describe करता है कि कम्युनिकेशन wireless होगा या wired होगा। फिजिकल लेयर को बिट यूनिट भी कहा जाता है।

Physical Layer के कार्य

  1. फिजिकल लेयर यह बताता है कि दो या दो से ज्यादा devices आपस में physically कैसे connect होती है.
  2. फिजिकल लेयर यह भी बताता है कि नेटवर्क में दो डिवाइसों के बीच किस transmission mode का इस्तेमाल किया जायेगा. ट्रांसमिशन मोड तीन प्रकार के होते हैं:- simplex, half-duplex, और full duplex.
  3. यह information को ट्रांसमिट करने वाले सिग्नल को निर्धारित करता है.
  4. यह नेटवर्क टोपोलॉजी के कार्य को पूरा करता है.

Data link layer (डेटा लिंक लेयर)

OSI Model में डेटा लिंक लेयर नीचे से दूसरे नंबर की लेयर है। इस लेयर को फ्रेम यूनिट भी कहा जाता है. इस लेयर में नेटवर्क लेयर द्वारा भेजे गए डेटा के पैकेटों को decode और encode किया जाता है तथा यह लेयर यह भी सुनिश्चित करता है कि डेटा के पैकेट्स में कोई error (त्रुटी) ना हो.

इस लेयर की दो sub-layers होती है:-

  1. MAC (मीडिया एक्सेस कण्ट्रोल),
  2. LLC (लॉजिक लिंक कण्ट्रोल)

डेटा लिंक लेयर में डेटा ट्रांसमिशन के लिए दो प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया जाता है.

  1. HDLC (High-Level Data Link Control)
  2. PPP (Point-to-Point Protocol)

डेटा लिंक लेयर के कार्य

  1. यह लेयर data packets को एनकोड और डिकोड करता है. इन data packets को हम frames कहते है.
  2. यह लेयर इन frames में header और trailer को add करने का काम करती है.
  3. डेटा लिंक लेयर का मुख्य कार्य flow control करना है. इसमें receiver और sender दोनों तरफ से एक निश्चित data rate को maintain किया जाता है. जिससे कि कोई भी data ख़राब( corrupt) ना हो.
  4. यह error को भी control करता है. इसमें फ्रेम के trailer के साथ CRC (cyclic redundancy check) को add किया जाता है जिससे डेटा में कोई error ना आये.
  5. इसका काम access control का भी होता है. जब दो या दो से अधिक devices एक communication channel से जुडी रहती है तब यह layer यह निर्धारित करती है कि किस डिवाइस को access दिया जाए.

Network layer (नेटवर्क लेयर)

नेटवर्क लेयर OSI model का तीसरा लेयर है, इस लेयर को पैकेट यूनिट भी कहा जाता है। इस लेयर में switching तथा routing तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस Layer का कार्य डिवाइसों को लॉजिकल एड्रेस अर्थात I.P. address प्रदान करना होता है.

नेटवर्क लेयर में जो डेटा होता है वह data packets के रूप में होता है और इन डेटा पैकेटों को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस तक पहुँचाने का काम नेटवर्क लेयर का होता है।

नेटवर्क लेयर का कार्य

  1. इसका मुख्य काम डिवाइसों को IP Address प्रदान करना होता है.
  2. इसका कार्य data packets को एक डिवाइस से दुसरे डिवाइस में पहुँचाने का होता है.
  3. नेटवर्क लेयर की मुख्य जिम्मेदारी inter-networking की भी होती है.
  4. यह data packets के header में source और destination address को add करती है. इस address का इस्तेमाल इन्टरनेट में devices को identify करने के लिए किया जाता है.
  5. इस layer का काम routing का भी है. यह सबसे अच्छे path (रास्ते) को निर्धारित करती है.
  6. इसका कार्य switching का भी होता है.

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